भूतं भव्यं भविष्यञ्च सर्वं वेदात् प्रसिद्ध्यति, अर्थात् सम्पूर्ण सृष्टि में जगन्नियंता ने जिस साहित्य या ज्ञान भण्डार के द्वारा मानवों का ज्ञान से तादात्म्य स्थापित किया, साधारण भाषा में हम उन्हें वेद कहते है। वेद सभी ज्ञान विज्ञान के अथाह भण्डार है, जहाँ ब्रह्म (ईश्वर) देव, ब्रह्माण्ड, ज्योतिष, गणित, रसायन, औषधि, खगोल, प्रकृति, जीव, समाज, भूगोल, इतिहास, धर्म, दर्शन आदि का समस्त ज्ञान भरा है। चारो वेदों में मुख्यतया – ऋग्वेद – स्थिति, यजुर्वेद – रूपांतरण, सामवेद – गतिशील तथा अथर्ववेद जड़ है, इसके अतिरिक्त ऋग को धर्म, यजु को मोक्ष, साम को कर्म एवं अथर्व को अर्थ कहा गया है। इन्ही को आधार मानकर चतुर्विध पुरुषार्थ की व्यवस्था बताई गयी है, इन्ही को ध्यान में रखते हुए अपौरुषेय ग्रन्थ वेदों का अध्ययन करने और पौरोहित्य कर्म की वैज्ञानिकता को जानने के लिए ही वेद एवं पौरोहित्य विभाग की स्थापना की गयी है। यजुर्वेद – यजु शब्द का सामान्य अर्थ यत + जु = यजु, अर्थात् यत का अर्थ गतिशील तथा जु का अर्थ आकाश से है। इसके अतिरिक्त श्रेष्ठ कर्म की प्रेरणा भी इसी से प्राप्य है। यजुर्वेद में यज्ञ की विधियाँ तथा यज्ञों में प्रयोग किये जाने वाले मंत्रो का वर्णन है। इसके अतिरिक्त तत्व ज्ञान का भी विशद विश्लेषण मिलता है। यह वेद गद्य स्वरूप में है। वैशम्पायन ऋषि का सम्बन्ध कृष्ण यजुर्वेद से तथा याज्ञवल्क्य का सम्बन्ध शुक्ल यजुर्वेद से है। दिव्य वैद्य तथा कृषि विज्ञान का वृहत्तम वर्णन प्राप्य है।