मुखं व्याकरणं स्मृतम् इस वचन के अनुसार वेद नारायण का मुख व्याकरण है, व्याकरण विभाग में प्राचीन गुरु शिष्य परम्परा के अनुसार तथा आधुनिक सन्दर्भ में व्याकरण शास्त्र की लोकोपादेयता को ध्यान में रखकर प्रशिक्षण दिया जा रहा है, संस्कृत बोलने तथा लिखने में विद्यार्थियों के कौशल को निखारना ही इस विभाग की विशेषता है। पाणिनि व्याकरण का अष्टाध्यायी क्रम नव्य मतानुरूप प्रायोगिक रूप से अध्यापन करवाया जाता है, संस्कृत अनुवाद प्रक्रिया कम्प्यूटर द्वारा, आधुनिक भाषाओं का संस्कृत से सम्बन्ध, तथा वैदेशिक भाषा (जर्मन, फ्रेंच आदि) को संस्कृत व्याकरण के माध्यम से सीखना सुलभ हो जाता है, यह अनुभव सिद्ध है, व्याकरण गणितीय अध्ययन पर विशेष ध्यान दिया जाता है। व्याकरण शास्त्र में निहित दार्शनिक तत्वों (वाक्यपदीयम्, वैयाकरण भूषणसार) का विश्लेष्णात्मक अध्यापन अनुभवी विद्वानों द्वारा करवाया जाता है। भाषागत प्रक्रियात्मक एवं दार्शनिक व्यापकता के कारण प्रसिद्ध संस्कृत व्याकरण का भाषाशास्त्रीय एवं विभिन्न भाषा परिवारों के निकट संबंधों के अध्ययन से समूचे विश्व में फैले हुए सभी मानव प्रजातियों को एकात्मता के सूत्रों का अन्वेषण कर मानव शास्त्रीय अध्ययन हेतु सुदृढ़ सीढ़ी तैयार की जा रही है। संस्कृत विषय की प्रतियोगी परीक्षाओं को केन्द्रित कर ही पाठ्यक्रम निर्धारण किया गया है, व्याकरण शास्त्र की वैज्ञानिकता पर विशेष शोध करवाए जाने है।