साहित्यसंगीतकलाविहीनः साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः किसी भी देश की पूर्णता और पुष्टता उसके साहित्य से ही मानी जाती है, और भारतीय साहित्य समूचेविश्व में हिमालय के समान उन्नत रही है । साहित्य के अध्ययन के बिना नीर-क्षीर विवेक की अभूतपूर्व क्षमता की कल्पना भी मिथ्या है, जिसकी आज के भोगपरक युग में नितांत आवश्यकता है। आज जहाँ सम्पूर्ण विश्व एकमत से रामायण, महाभारत, रघुवंशम्, शिशुपालवध, मृच्छ्कटिकम्, कादंबरी, मेघदूत, आदि भारतीय ग्रंथों को शिरोधार्य बना रहा है, ठीक उसी परिपेक्ष्य में हमारे यहाँ विद्यार्थियों को संस्कृत एवं वैदिक साहित्यिक ज्ञान के साथ रस छंदों अलंकारों का ज्ञान के साथ नाट्य आदि की प्रस्तुति रंगमच के माध्यम से तथा सहज ही संस्कृत में श्लोक रचना आदि को सरलता से सिखाया जाता है। साहित्य, पुराण, इतिहास, नाट्यशास्त्र आदि का प्रायोगिक अध्ययन ही इस संकाय की विशेषता है।
नीतिग्रंथों के अनुसार धनोपार्जन, कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार जीवन जीने
की कला आज के परिपेक्ष्य में विशेष कर अध्यापन करवाया जाता है, जिससे
विद्यार्थियों और शोधार्थियों में चिंतन शैली विश्व स्तर की होकर विश्व सामाजिक,
राजनैतिक, साहित्यिक चेतना का भी सृजन होता है। उड़िया, तमिल, अरेबिक,
फारसी, जर्मन, लेटिन, ग्रीक आदि भाषाओं के साहित्य में प्रतिबिंबित हमारी धरोहर
साहित्यिक ग्रंथों की वैश्विक पटल पर सान्दर्भिकता के साथ वर्तमान समाज के लिए
अपेक्षित मार्गनिर्देशन हेतु शोधार्थियों को निरंतर दिशा निर्देशित किया जाता है।
वस्तुतः साहित्य से समाज को सही दिशा देने में संस्कृत के विद्वानों तथा साहित्यिक
आलोचकों की सम्पूर्ण वैश्विक साहित्य पर अपनी स्वतंत्र निर्विवाद छवि है। साहित्य
संस्कृति विभाग के अंतर्गत प्रतिष्ठापित साहित्य विभाग में छात्रों के ज्ञान में बहुमुखी
अभिवृद्धि हेतु विभागीय आचार्यो द्वारा विशेष प्रायोगिक कार्यक्रमों का संचालन
करवाया जाता है।
वर्तमान के प्रतियोगिता युग के अनुरूप प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए छात्रों को
रघुवंशम्, मेघदूत, कादंबरी, वाल्मीकि रामायण, शिशुपालवध, हर्षचरित,
साहित्यदर्पण, काव्यादर्श, छ्न्दोमंजरी, स्वप्नवासवदत्ता आदि विशेष मार्गदर्शन हेतु
नियमित एवं विशेष कक्षाएँ भी आयोजित की जाती हैं। इस विभाग में भाषा के
तात्विक ज्ञान हेतु भाषा विज्ञान एवं प्रयोगशाला भी स्थापित की जा रही है।