ज्योतिषं नेत्रमुच्यते षडंग वेदांगों में ज्योतिषशास्त्र को वेद पुरुष के नेत्र रूप में स्वीकार किया गया है, वेद वेदांग विभाग के अंतर्गत ज्योतिष शास्त्र का वर्तमान युगानुरूप सिद्धांत ज्योतिष, फलित ज्योतिष, संहिता, वास्तुशास्त्र, सामुद्रिक शास्त्र का ज्ञान विद्यार्थियों को करवाया जाता है । वर्तमान परिपेक्ष्य के अनुरूप जातक जन्मपत्रिका निर्माण विधि, विविध संस्कारों के मुहूर्त्तादि का निर्धारण, ग्रहगोचर स्थिति, वैवाहिक तथा वास्तु अनुरूप अष्टकूट मिलान, काकिणी विचार, जन्मपत्रिका के फलकथन महादशा आदि निर्धारण के द्वारा ग्रहकोप शांत्योपाय, आदि का प्रायोगिक अध्यापन करवाया जाता है। ज्योतिष अर्थकरी विद्या है यह किसी से नही छिपा है, विश्वविद्यालयी शिक्षा स्तर पर लगभग भारत का प्रथम नक्षत्र वाटिका, ग्रहवाटिका एवं राशिवाटिका का दर्शन एवं प्रायोगिक अध्ययन ही अन्य संस्थाओं से विशेष बना देते है।

 

फलानि ग्रहचारेण सूचयन्ति मनीषिण:,

को वक्ता तारतम्यस्य तमेकं वेधसं विना ।

ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्धेशेऽर्जुन तिष्ठति,

भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानिमायया ।।

 

प्रायोगिक ज्योतिषशास्त्र के अध्ययन हेतु संहिता शास्त्रोक्त स्वरविज्ञान हेतु गौशाला, खुले अंतरिक्ष के नीचे ग्रहों तारों का प्रायोगिक दर्शन के अतिरिक्त स्वतंत्र निर्माणाधीन वेधशाला ज्योतिष के विभिन्न यंत्रों, गोल आदि निर्माण प्रायोगिक विधि द्वारा, खगोलीय विभिन्न पिंडो की जानकारी प्रकाशमापी, वर्णक्रमदर्शी, दूरदर्शी आदि यंत्रों सहित बैनाकुलर, वर्षा मापक यन्त्र, मानव यंत्र की व्यवस्था भी बनाई गयी है। ज्योतिषीय खगोल एवं भूगोल तथा वैदिक गणित रोमक, पोलिश, वाराह, वटेश्वर, श्रीपति, भास्कराचार्य, ब्रह्मगुप्त, आर्यभट्टादि के सिद्धान्तों का अध्यापन करवाया जायेगा। इसके अतिरिक्त वास्तुशास्त्रीय अध्ययन में वर्तमान युगानुरूप भूमिचयन, भूमिशोधन, व्यावसायिक वास्तु विचार, औद्योगिक क्षेत्र, कम्पनी, कल कारखाने, भवन निर्माण, बगीचा निर्माण आदि का प्रायोगिक अध्ययन की व्यवस्था  की गयी है। वर्तमान युग में प्रतियोगी परीक्षाओ हेतु विभिन्न तैयारियां यूजीसी नेट पीएससी आदि की तैयारी योग्य आचार्यो के विशेष निर्देशन में करवाया जाता है । उपर्युक्त विषयों में डिप्लोमा से लेकर शास्त्री, आचार्य एवं विद्यावारिधि आदि की कक्षाओं में प्रवेश लेकर विषयगत ज्ञान लिया जा सकता है, समय-समय पर शोध संगोष्ठी कार्यशाला आदि का आयोजन कर विद्वानों के माध्यम से दिशा निर्देश होता रहता है।

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Faculty in Department of Jyotish

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Dr. Mrityuanjay Kumar Tiwari
Assistant Professor