इतिहास तथा उत्पत्ति

श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय, निम्बाहेडा भारत का वीर सपूत श्री कल्लाजी राठौड की स्मृति उद्देश्य से 27 मार्च 2018 को  शुभारम्भ किया गया | जिनका जन्म सन् 1544 (ए.डि.) विक्रम संवत् 1601 श्रावण शुक्ल अष्टमी तिथि को राजस्थान प्रान्त के नागौर नगर केसामियाना ग्राम में हुआ था। इनके पिताजी सामियाना जागीर के राव श्री अचलसिंहजी और माता श्वेत कुंवरजी थे। भक्तिमती मीरा बाई का जन्म भी आपके के ही कुल में हुआ था। वह कल्लाजी की बुआ लगती थी। कहते है इनकी माता श्वेत कुंवरजी ने शिव पार्वती के आशीर्वाद से उन्हे प्राप्त किया था। वीरवर कल्लाजी बड़े प्रतिभा सम्पन्न रणबांकुरे योद्धा हुये है। उन्होने योगविद्या की शिक्षा गुरु भैरवनाथजी से ली थी । उनकी कुलदेवी नागणेची थी। इनके जन्म का नाम केसरसिंह थाअपितु वह कहर, कल्याण, कमधज, वालब्रह्मचारी, योगी आदि नाम से जाने जाते थे। मातृभूमि के प्रति उनकी अटूट प्रेम तथा वैदिक संस्कृति, आयुर्वेद, योगादि के प्रति उनका विशेष अनुराग था । 
 
श्री कल्लाजी राठौड बहुत बडे योद्धा थे, जो महाराणा उदयसिंह के सैन्य के रूप में अकबर के चित्तौड आक्रमण के दौरान प्रमाणित हो गया था। सन् 1568 को जब उनका विवाह का विधिवत् कार्य परिचालन हो रहा था उसी समय रण दुन्दुभी बजने लगी और उन्होने अपने नव विवाहित पत्नी श्रीमती कृष्णकुंवर चौहानजी को यह प्रतिसृति दिए की – युद्ध का परिणति कुछ भी हो, मैं जरुर लौट के आउँगा । 

महासेनापति श्री जयमलजी राठौड, जिनका बल एक हाथी की बराबर था, उनके जंघा में गोली लगने से वे घायल हो गये। उनकी इच्छा थी की वे युद्ध करें किन्तु घायल अवस्था में घोडे पर बैठ कर युद्ध संभव नहीं था। अतः श्री कल्लाजी राठौड ने उन्हें कन्धे पर बिठाकर विकराल युद्ध किया। दोनों वीरों ने चारों हाथों से चतुर्भुज रूप में मुगल सेना का संहार किया। अकबर को ऐसा प्रतीत हुआ कि हिन्दुओं के चार भुजा धारी विष्णु स्वयं युद्ध भूमि में युद्ध करने आ गये हैं। एक हाथी द्वारा जयमलजी का वध कर देने के बाद श्री कल्लाजी महाराज द्वारा बहुत विकराल युद्ध किया गया, जिस में श्री कल्लाजी ने रणचण्डी को अपने शीर्ष की आहुति दे दी। तथा विना शीर्ष (कमधज रूप) में जो युद्ध किया वह पूर्व के युद्ध से कहीं अधिक खतरनाक युद्ध था तथा अन्त में वीरगति को प्राप्त हुए। 

श्री कल्लाजी राठौडजी के वेद, वैदिक संस्कृति, योग, आयुर्वेद आदि विषयों के प्रति अनुपम श्रद्धा श्री शेषावतार 1008 कल्लाजी वेदपीठ तथा शोध संस्थान के प्रबन्धक मण्डल को श्री कल्लाजी के नाम पर एक विश्वविद्यालय प्रतिष्ठा करने हेतु उत्साहित किया था जो की 27 मार्च, 2018 को उनका स्वप्न साकार रूप धारण किया ।